अपनों का विरोध, तिरस्कार और मिलता अपयश।
हेमन्त भोपाले ।ये बात अभी भाजपा में अधिक देखने में आ रही है। जिन प्रत्याशियों के नाम तय हो गए, वहां स्थिति संभालना पड़ रही है और कुछ जगह वर्तमान विधायक के कामकाज और कार्यप्रणाली के चलते विधायक को तिरस्कार झेलना पड़ रहा है। विरोध, तिरस्कार का अर्थ यही है कि पार्टी ने जिसे चुना वह सर्वमान्य पसंद नहीं है, यानी एक ऐसे व्यक्तित्व का चयन नहीं किया गया, जिसे सभी पसंद करते हो और जिसे हर कोई ऊंचे ओहदे पर देखना चाहता हो। सोशल मीडिया पर अभी भाजपा की जनदर्शन यात्रा के दौरान उज्जैन के महिदपुर में वर्तमान विधायक बहादुरसिंह चौहान के विरुद्ध भाजपा के ही लोगों ने नारे लगाए। ये नारे कांग्रेस के लोग लगाते तो विरोध समझ में भी आता। पर भाजपा के वर्तमान विधायक का भाजपाइयों द्वारा तिरस्कार करना, यानी विधायक का अपनों से तिरस्कार झेलना कहीं न कहीं अवगुणों का, सबसे परायेपन का घड़ा भरने के संकेत दे रहा है। क्योंकि विधायक का ओहदा एक ऐसा माध्यम था, जिसके सहारे1 पूरे नगरवासियों को अपने दिल में बसा सकते थे या जिसके सहारे विधायक पूरे नगरवासियों के दिलों में बस सकते थे। लेकिन इस तरह विरोधियों का प्रकट होना राजनीति का हिस्सा जरूर हो सकता है, पर व्यक्तित्व की उस उज्ज्वल छवि को प्रकट नहीं कर रहा, जिसमें विरोध करने वाले अपयश के भागी बने। राजनीति में ऐसे बहुत विरले लोग होंगे, जिनका विरोध करने पर विरोध करने वाला ही दूषित छबि का कहलाये। ऐसा तो सिर्फ ईमानदारी, स्वच्छ छवि, स्पष्टवादिता, निर्मोही बनकर ही संभव है और राजनीति में आने के बाद तो हर विधायक हो या सांसद, ‘बैठक’ जरूर करता है। चाहे बैठक व्यवस्था सुदृढ करने के नाम पर हो। खैर ईमानदार नेता के रूप में बात यहां सिर्फ भाजपा की नहीं हो रही। कांग्रेस में भी कई लोग ‘बारिश में नहाने’ वाले मिल जाएंगे। ऐसे में ‘बारिश’ से बचने का कोई प्लान नहीं। बस होने दो। बहकर आने दो। तन के पोर-पोर को बारिश में भीगने दो। ऐसा अवसर कहाँ बार-बार आता है। इसी बारिश से तो ‘पेटियां’ भरती है। वर्तमान में शायद ही कोई ऐसा होगा, बारिश से पेटियां भरने की बजाय विशुद्ध रूप से स्वयं को सेवा के प्रति समर्पित करें। क्योंकि समर्पित व्यक्ति का लालच में फंसना असंभव है। चूंकि राजनीति से जुड़े लोगों पर आरोप आसानी से लगा दिया जाता है। जरूरत तो राजनीति में रहकर उस छबि को प्राप्त करने वाले के चयन की है, जिस पर सभी आरोप सदैव निर्मूल, निराधार साबित हो और उसके साथ सभी चलने को तैयार रहें।
राजनीति में सबसे अधिक बातें जो देखने में आती है, वह यही कि हर नेता दौड़ में आगे निकलने और दूसरों को पीछे धकेलने का प्रयास करता रहता है, फिर चाहे साम, दाम, दण्ड, 1भेद की नीति ही क्यों न चलना पड़े और विडंबना यह कि राजनीति के नशे में हर कोई इसका आसानी से शिकार हो जाता है। साम, दाम, दण्ड, भेद का पहला शब्द साम का हल्का सा प्रभाव ही कई लोगों को पीछे धकेल देता है, क्योंकि कारण अनुचित होते हैं। सत्ता के नशे में कई लोग उचित-अनुचित को भुला बैठते हैं और राजनीति की कूटनीति का शिकार हो जाते हैं। जो ईमानदार, निर्मोही, लालसा से रहित, सदैव सबके मन को हरने वाला हो, उसे कूटनीति तो क्या, दुनिया के किसी भी छल से नहीं छला जा सकता है, क्योंकि उस पर सारे आरोप सदैव निर्मूल, निराधार ही साबित होते हैं और आरोप लगाने वाले अपयश के भागी बन जाते हैं। सत्य कभी छुपता नहीं है। विधायक या सांसद बनने पर हर नेता धनवानों की शोभा बढ़ाने वाले आवरण में समाहित हो जाता है। इन शोभायमान आवरण को ही सबसे ज्यादा आवश्यक समझने लगता है। इन सब माया के परे होकर काम करते हुए आज कोई नेता दिखाई नहीं देता। अगर एक भी ऐसा मिल जाए तो इतना तो तय है वह अकेला ही एक-एक व्यक्ति को अपनेपन की अनुभूति कराएगा। आज की राजनीति में ऐसे गुणी व्यक्तित्व को ढूंढना असंभव है। संभव है तो बस वोट देना। जिसे भी टिकिट मिले, चाहे जिस पार्टी का हो। अगर बदलाव चाहते हैं तो कांग्रेस को चुनो, यदि यही सत्ता पसंद है तो भाजपा। लेकिन पार्टी से ऊपर यदि स्थानीय उम्मीदवार पसंद हो तो स्थानीय उम्मीदवार को भी वोट दिया जा सकता है। अब ये पार्टी की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारे, जो सब लोगों की पसंद हो।